जीवन-मरण
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जीवन की गोधूलि में जब अपने ना दे साथ।
परमात्मा ने पकड़ा दिया फिर वृद्धाश्रम का हाथ॥
हम सब खुश इस दुनिया में, प्रभु तेरा शुक्र गुजार हूं।
नहीं अपेक्षा मुझे किसी से, तुम मुझमें मैं तुझमें हूं।
जीवन का यह नवप्रभात, हो अनासक्त निष्काम।
अंतिम श्वासों तक हे प्रभु लव पर हो तेरा नाम।
जीवन की गोधूलि में जब अपने ना दें साथ।
परमात्मा ने पकड़ा दिया फिर वृद्धाश्रम का हाथ॥
वृद्धाश्रम में रखना भी बच्चों को नित देता आशीष।
भूल चुका हूं क्लेश-वियोग, नहीं कोई तफशीष।
बस अंतिम इच्छा है मेरी, बने रहो प्रभु मेरे साथ।
परमात्मा ने पकड़ा दिया है इस वृद्धाश्रम का हाथ
जीवन की गोधूलि में जब अपने ना दे साथ।
परमात्मा ने पकड़ा दिया है इस वृद्धाश्रम का हाथ, इस वृद्धाश्रम का हाथ॥
शिव शंकर रस्तोगी
एडवोकेट
वाराणसी
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